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24 Jan 2025 · 1 min read

भ्रष्टाचार

तुम लोगतंत्र रथ पर सवार
सबके बन बैठे प्राणाधार
मिलता है तुमको जनाधार
नित नूतन करते आविष्कार
किसकी क्षमता है घर बैठे
जो आज तुम्हारा तिरस्कार
जीवन शक्ति के चमत्कार
हे दुशासन हे अनाचार हे भ्रष्टाचार
घनघोर घटा छाई है
पावस की रात अंधेरी है
लेकिन तेरी ज्योतिर्गमय किरणों ने
क्या घटा बिखेरी है
हे श्यामवर्ण तेरी चंदन
चितवन तो बड़ी घनेरी है
तुम गंगा के उद्गगम से लघु
बन जाते हो सागर अपार
हे दुराचार हे अनाचार हे भ्रष्टाचार
तू शंकर सा है अविनाशी
घट घट का है तू ही वासी
रामेश्वर हो या हो काशी
नर नारी हो या सन्यासी
सुख है तुमने महामंत्र
हर कण कण है तेरी दासी
तुम रोम रोम में रमते हो
सचमुच जैसे हो निरंकार
हे दुराचार हे अनाचार हे भ्रष्टाचार
तुम श्वेत वस्त्र के धारक हो
तुम सत्य अहिंसा मारक हो
तुम हर कुर्सी में बसते हो
हर फाइल के तुम कारक हो
हे पाप कर्म के उच्च शिखर
तुम पूज्य आत्मा संहारक हो
तुम सूर्य चंद्र पर छा जाते
बन राहु केतु के अंधकार
हे दुराचार हे अनाचार हे भ्रष्टाचार
तुम नेत्रा युग के रावण हो
तुम हो द्वापर के कंस राज
इस कलयुग में बन बैठे हो
मर्यादा की तुम हंसराज
हे गरल कुंड हो सावधान
तेरा होगा विध्वंस राज
इस पावन धरती पर होगा
तेरा भी अंतिम संस्कार
हे दुराचार हे अनाचार हें भ्रष्टाचार
साहिल अहमद

Tag: Poem
48 Views
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