मयकदों के निज़ाम बिकते हैं ।

मयकदों के निज़ाम बिकते हैं ।
शाम के साये में जाम बिकते हैं ।
ये सियासत की गालियां हैं यारो –
यहाँ तो ईमान सरेआम बिकते हैं ।
सुशील सरना
मयकदों के निज़ाम बिकते हैं ।
शाम के साये में जाम बिकते हैं ।
ये सियासत की गालियां हैं यारो –
यहाँ तो ईमान सरेआम बिकते हैं ।
सुशील सरना