दोहा पंचक. . . . धनवान
दोहा पंचक. . . . धनवान
धन से जो धनवान वो, मन से मगर गरीब ।
कैसे किसी गरीब का, होगा प्रवर नसीब ।।
धन से जीवन जोड़ते, अक्सर सब धनवान ।
वो क्या जानें दीन की, अर्थ हीन मुस्कान ।।
धनवानों का हर तरफ, होता है सम्मान ।
निर्धन देखे शून्य में, नीला मौन वितान ।।
धन से धन बढ़ता मगर, साथ बढ़े अभिमान ।
हेय दृष्टि से देखता, निर्धन को धनवान ।।
उल्टे सीधे कर्म सब, करता यह धनवान ।
निर्धन का संसार में, पत्थर का भगवान ।।
सुशील सरना / 24-1-25