Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
24 Jan 2025 · 3 min read

#75_साल

#75_साल
■ बस, एक ही सवाल : “तंत्र” आख़िर किसका…?
★ “जन” का या फिर “गण” का…?
[प्रणय प्रभात]
“जनतंत्र” यानि “जनता पर जनता के लिए जनता द्वारा किया जाने वाला शासन।”
यही परिभाषा बचपन से पढ़ते आए थे आप और हम। इस परिभाषा के शब्द और अर्थ 75 साल में कब बदल गए, पता ही नहीं चला। मात्र एक शब्द ने न केवल सारी परिभाषा बदल कर रख दी, बल्कि “जनतंत्र” को “गणतंत्र” कर सारे मायने ही बदल डाले। ऐसा अपने आप हुआ या “तंत्र” की खोपड़ी में घुसे “षड्यंत्र” से, यह अलग से शोध का विषय है। जिसे राष्ट्रीय सम्प्रभुता के अमृत-वर्ष का एक ज्वलंत सवाल भी मान सकते हैं आप।
जो कहना चाहता हूँ, उसे बारीक़ी से समझने का प्रयास करें। संभव है कि जो खिन्नता मेरे मन मे उत्पन्न हुई है, वो आपके मन मे भी उत्पन्न हो। तब शायद यह एक बड़ा सवाल सभी के दिमाग़ में कुलबुला सके कि “आख़िर क्या किया जाए उस गणतंत्र का…जो “जन” यानि अपने लिए है ही नहीं…?”
आप मानें या न मानें, मगर सच वही है जहां तक मेरी सोच पहुंच पाई है। सच यह है कि हमारे देश में “जनतंत्र” अब बचा ही नहीं है। उसे तो कुटिल सत्ता-सुंदरी ने कपटी सियासत के साथ मिली-भगत कर “गणतंत्र” बना दिया है। जिसके बाद समूचा तंत्र “जन” नहीं “गण” के कब्ज़े में नज़र आता है।
“गण” अर्थात “दरबारी”, जिन्हें हम मंत्री या सभासद आदि भी कह सकते हैं। जो लोग “जन” और “गण” को एक मानने की भूल बीते 74 सालों (सन 1950) से करते आ रहे हैं, अपना मुग़ालता आज दूर कर लें। जान लें कि “जन” और “गण” दोनों एक नहीं अलग हैं। यदि नहीं होते तो गुरुदेव टैगोर राष्ट्रगीत में दोनों शब्दों का उपयोग एक ही पंक्ति में क्यों करते? वो भी राष्ट्रगीत की ध्रुव पंक्ति में।
स्पष्ट है कि अंतर “आम आदमी” और “ख़ास आदमी” वाला है। आम वो जो “भाग्य-विधाता” चुनने के लिए चार दिन के भगवान बनते हैं। ख़ास वो, जो एक बार चुन लिए जाने के बाद सालों-साल देश की छाती पर मनमानी की मूंग दलते हैं। जिनकी विरासत के हलवे का स्वाद उनकी पीढियां जलवे के साथ लेती हैं। थोड़ा सा तलवे सहलाने और सूंघने, चाटने वाले भी।
कोई महानुभाव इस तार्किक विवेचना और निष्कर्ष से इतर कुछ समझ सके तो मुझ अल्पज्ञ को ज़रूर समझाए। बस ज़रा शाब्दिक संयम और वैचारिक मर्यादा के साथ। वो भी एक और 26 जनवरी से पहले। ताकि उत्सव मनाने या न मनाने का निर्णय एक आम नागरिक की हैसियत से ले सकूं और उस शर्मिंदगी से बच सकूं, जो हर साल राष्ट्रीय पर्व के आयोजन को देख कर संवेदनशील मन में उपजती है। “रेड-कार्पेट” से गुज़र कर नर्म-मुलायम सोफों और कुर्सियों पर विराजमान “गणों” व भीड़ का हिस्सा बन धक्के खा कर मैदान में बंधी रस्सियों के पार खड़े “जनों” के फ़ासले को देख कर। कथित राष्ट्रीय उत्सव की विकृति और विसंगति, जो आज़ादी के अमृत-काल में भी अजर-अमर नज़र आई और अब पूर्ण स्वाधीनता के हीरक-वर्ष में भी नज़र आनी पूरी तरह से तय है।
चमचमाती वर्दी की बेदर्दी के चलते नज़रों को चुभने वाले पारंपरिक नज़ारों को मन मसोस कर देखना नियति क्यों माना जाए…? तथाकथित प्रोटोकॉल के नाम पर अघोषित “असमान नागरिक संहिता” को ग़ैरत रहन रख कर क्यों सहन किया जाए…? हम क्यों न प्रतीक्षा करें देश मे निर्वाचित “गणतंत्र” की जगह निर्वासित “जनतंत्र” के “राज्याभिषेक” की…? जो एक राष्ट्रीय महापर्व को समानता व समरसता के मनोरम, मनभावन परिदृश्य दे सके। तब तक टेलीविज़न और चैनल्स हैं ही, सम्नांन से घर बैठ कर मनोरंजन करने के लिए। आख़िर ज़रूरत क्या है ज़लालत के कसैले घूंटों के साथ औरों के पैरों से उड़ती धूल फांकने की…? रहा सवाल “आत्म-गौरव” की अनुभूति का, तो उसके लिए अपना एक “भारतीय” होना ही पर्याप्त है। बिना किसी प्रदर्शन या पाखण्ड के।।
जय हिंद, वंदे मातरम। जय जनतंत्र।।
👌👌👌👌👌👌👌👌👌
#कथ्य-
विरोध किसी दिवस या पर्व नहीं, विकृत और विसंगत परिदृस्यों का है। वो दृश्य जो एक महान देश के महत्वपूर्ण घटक एक आम नागरिक के आत्मसम्मान के चेहरे पर करारा तमाचा है। बासी प्रोसीडिंग के आधार पर तय सड़ी-गली व्यवस्थाओं के कारण। जिन्हें अब बदला जाना आवश्यक हो चुका है।
【संपादक】
★ न्यूज़ & व्यूज़★
(मध्यप्रदेश)

1 Like · 39 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

धुंध में लिपटी प्रभा आई
धुंध में लिपटी प्रभा आई
Kavita Chouhan
मोबाइल ने छीनी रूबरू मुलाकातें
मोबाइल ने छीनी रूबरू मुलाकातें
ओनिका सेतिया 'अनु '
🙅नुमाइंदा_मिसरों_के_साथ
🙅नुमाइंदा_मिसरों_के_साथ
*प्रणय प्रभात*
4410.*पूर्णिका*
4410.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
* किसे बताएं *
* किसे बताएं *
surenderpal vaidya
कर्मफल
कर्मफल
मनोज कर्ण
5. *संवेदनाएं*
5. *संवेदनाएं*
Dr .Shweta sood 'Madhu'
रौशनी मेरे लिए
रौशनी मेरे लिए
Arun Prasad
दोस्त कहता है मेरा खुद को तो
दोस्त कहता है मेरा खुद को तो
Seema gupta,Alwar
सृजन
सृजन
Rekha Drolia
पैसा है मेरा यार, कभी साथ न छोड़ा।
पैसा है मेरा यार, कभी साथ न छोड़ा।
Sanjay ' शून्य'
48...Ramal musamman saalim ::
48...Ramal musamman saalim ::
sushil yadav
*आज़ादी का अमृत महोत्सव*
*आज़ादी का अमृत महोत्सव*
Pallavi Mishra
तुम्हे_ प्यार_इतना_ किए जा रहे है
तुम्हे_ प्यार_इतना_ किए जा रहे है
कृष्णकांत गुर्जर
"गुल्लक"
Dr. Kishan tandon kranti
ये धरती महान है
ये धरती महान है
Santosh kumar Miri
परिस्थितियां ही जीवन का परिमाप हैं.
परिस्थितियां ही जीवन का परिमाप हैं.
Satyakam Gupta
सुंदर विचार
सुंदर विचार
Jogendar singh
*आठ माह की अद्वी प्यारी (बाल कविता)*
*आठ माह की अद्वी प्यारी (बाल कविता)*
Ravi Prakash
बच्चे आज कल depression तनाव anxiety के शिकार मेहनत competiti
बच्चे आज कल depression तनाव anxiety के शिकार मेहनत competiti
पूर्वार्थ
नारी
नारी
Jai Prakash Srivastav
माना इंसान अज्ञानता में ग़लती करता है,
माना इंसान अज्ञानता में ग़लती करता है,
Ajit Kumar "Karn"
Ranjeet Kumar Shukla
Ranjeet Kumar Shukla
हाजीपुर
संभल जाओ, करता हूँ आगाह ज़रा
संभल जाओ, करता हूँ आगाह ज़रा
Buddha Prakash
रमेशराज के 2 मुक्तक
रमेशराज के 2 मुक्तक
कवि रमेशराज
मेरी जिंदगी की दास्ताँ ।
मेरी जिंदगी की दास्ताँ ।
manorath maharaj
यक्षिणी-7
यक्षिणी-7
Dr MusafiR BaithA
सार छंद विधान सउदाहरण / (छन्न पकैया )
सार छंद विधान सउदाहरण / (छन्न पकैया )
Subhash Singhai
!!! भिंड भ्रमण की झलकियां !!!
!!! भिंड भ्रमण की झलकियां !!!
जगदीश लववंशी
खुद क्यों रोते हैं वो मुझको रुलाने वाले
खुद क्यों रोते हैं वो मुझको रुलाने वाले
VINOD CHAUHAN
Loading...