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24 Jan 2025 · 2 min read

सुनो तो तुम...

सुनो तो तुम
कोई शून्य से पुकार रहा,
कोई तुम्हें बुला रहा
जेठ की तपती दुपहरी में,
आग्नेय दग्ध पथ पर _
बटवृक्ष की छांव तले
बैठे पथिक ,
जरा सुनो तो _
वटवृक्ष की शाख़ पर बैठे
चिड़ियों की चहचहाहट को,
चीं चीं चूं चूं कर फुदकते
इन खगवृंदो की आहट को,
कहती है पथिक से वो,
आगे जाकर देखो _
खेतों, खलिहानों चारागाहों में,
नन्हें बछड़ों की टोली को _ जो,
श्वेत श्याम गायों के थनों से खेलता
मुँह में दुग्ध झाग लपेटे ,
खुरों को धरा पर टिकाते ही विद्युत गति से,
अपने चारो पैरों में से
पहले अपने बांह रुपी पैर ,
और फिर
शेष दोनों को ,
बारी-बारी से फेंक छलांग लगाता
उछल-कूद करता दिखेगा,
वो पूछेगा तुझसे
तेरे दो हाथ और पैर,
लकवाग्रस्त क्यों लगते,
पथिक _
मन, मृग के समान चपल
देख रहा दूर तलक जिजीविषाओं को,
पर तन, निस्पन्द शिथिल
बंधनों से घिरा,
सावधान !
आगे देखना पथ पर,
वो जल भरा सरोवर नहीं _
दग्ध किरणों से उपजी,
मृगमरीचिकाएं हैं _
सरोवर कोसों दूर है यहाँ से,
जहां दो हंसो का जोड़ा
अपनें मुख से आहार न खोजकर
मोतियों को ढूंढता फिरता मिलेगा,
तुम्हें वहां भी रुकना नहीं है
आगे बढ़ते जा,
सरोवर पार गिरि कन्दराओं की ओट में,
इसके ठीक ऊपर
सूर्य का घोंसला,
शून्य क्षितिज के पार
कहता _
आओ मेरे पास,
शून्य अपरिमित व्योम
जीवन का विलयन,
शून्य , नीरव समाधि का _
ध्यान योग का चरम बिन्दू _ शून्य

मौलिक और स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – २४/०१/२०२५
माघ ,कृष्ण पक्ष, दशमी तिथि , शुक्रवार
विक्रम संवत २०८१
मोबाइल न. – 8757227201
ईमेल पता :- mk65ktr@gmail.com

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