खामोशियाँ

कहाँ गये उल्लास जिगर के, खामोशियाँ बस रह गई हैं मन में।
सुबह से शाम तक थी किलकारियाँ,अब जीवन कटता उलझन में।।
परिवार हैं सिमट रहे अब, चाचा ताऊ नहीं मिलते हैं घर में।
भाई मिले तो बहन ना मिलती,बहन मिले तो भाई ना घर में।
अपनापन सब ढूंढ रहे हैं पर अपने, रिश्ते बचे नहीं जीवन में।
प्यार से जो भी झूठ बोलता,बस वहीं अपना लगता है जग में।।
उलझे हुए रिश्तों से जीवन भी उलझ गया है हर घर में।
क्योंकि परिवार की परिभाषा ही बदल है जीवन में।।
कहे विजय बिजनौरी परिवार में पांच पीढी मिलती थी एक घर में।
लेकिन अब बड़ी मुश्किल से ही दो पीढी मिलती है एक घर में।।
विजय कुमार अग्रवाल
विजय बिजनौरी।