भगवान, भगवान ना रहा, अब वो मंदिर में बैठा, खिलौना बन गया है,

भगवान, भगवान ना रहा, अब वो मंदिर में बैठा, खिलौना बन गया है, भावनाओं का खेल सजा। सजावटों में खो गया, मंत्रों की गूंज में, पर क्या सच में है वो या बस है एक झूठा चेहरा ?
चंद दीप जलाने से, क्या मिटेगा अंधेरा?
हमने तो खो दिया है, विश्वास का वो बसेरा। कदम बढ़ाए हम सब, पर रास्ते में कांटे हैं, वो सिला नहीं मिलता, जो सच्चे दिल की मांगे हैं।।
रुदन में छिपा है, आस्था का ये मर्म, इंसानियत भटका दी, उस दर की हर एक धर्म। मंदिर की चौखट पर, अब बस हैं आंकड़े खड़े, आँखों में धुंधलका, मन में बस आहें भरे।।
क्या बिन प्यार के बचा, वो कैलाश का निवास? या खो गए हम इच्छाओं में, भूल गए इन्सानियत का
खास।।
ज्यूं खिला एक खिलौना, उसके हाथों में बंधा, भगवान अब बस एक रूप है, हमारा जोड़ा नहीं, पर एक पेचिदा बंधन है।।
उदासियों में हमें, प्रेम की एक धुन मिल जाए, तभी हम फिर से उसे, असली रूप में जान पाएंगे। तू लौट आ, हे भगवान, फिर तू सच में बसा दे, बस एक बार फिर हमें, खुद में जिए और जिंदा कर दे।।