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4 Jul 2016 · 1 min read

बचपन अच्छा था

बचपन अच्छा था, मालामाल थे
अब तो भरी जेब में भी फकीरी है
खरीद ना पाएं समय खुद के लिए
किस काम की ऐसी अमीरी है

खुश थे, लगती थी जो कामयाबी हमें
लग गई कब अपनी ही बोली पता ना चला
खुशी खरीदने में औरों की
खुद खर्च हो गए कब पता ना चला

खर्च हुए तो सोचा दोस्तों

जब इतनी ही खुदगर्ज है जिंदगी
तो दूसरों के लिए मर मर के जीना
क्या जरूरी है?

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