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19 Jan 2025 · 1 min read

अखण्ड प्रेम की आस

जब कभी याद तुम्हारी आती है
तब नाम भी लेता हूॅं डर डर कर
फिर भी अब तक अपने दिल को
रखा है मैंने उम्मीदों से भर कर
सबसे छुप-छुपकर मिलने का
कब तक इस तरह चलेगा दौर
कहीं देखता ही न रह जाऊॅं मैं
तुम्हें लेकर चला जाएगा और
खुलकर कैसे बतलाएं लोगों को
बिना तुम्हारे रह भी नहीं सकता
साथ जीने की बात तो छोड़ो
अब अकेले मर भी नहीं सकता
ऐसा हमने क्या कर दिया है जो
हो गया है हमसे बहुत ही गुनाह
हमारे प्यार को क्यों लग गई है
सभी अपने लोगों की ही आह
चलो एक बार फिर कहीं से
करते हैं अपनी नई शुरुआत
डर डर कर अब अधिक नहीं
खुलकर रखते हैं अपनी बात
जो हो गया सो हो गया है अब
मुझे पूरा है अभी भी विश्वास
इससे नहीं टूटेगी फिर कभी
अपने अखण्ड प्रेम की आस

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