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19 Jan 2025 · 1 min read

दोहा पंचक. . . मानव

दोहा पंचक. . . मानव

मानव इनको हम कहें, या जहरीले नाग ।
मीठा बनकर यह सदा, हरदम उगलें आग।।

मानव मन की बात का, कैसे हो अनुमान ।
अंतस में कुछ और है, बाहर है मुस्कान ।।

बदल गया इंसान की, फितरत का परिधान ।
अब मानव को ढूँढता, मानव में भगवान ।।

मानव ही छलने लगा, मानव की पहचान ।
धोखा दे कर झूमता, पाखंडी इंसान ।।

मानव मन की दौड़ का, मुश्किल है अनुमान ।
किसका साधे लक्ष्य यह, क्या करता संधान ।।

सुशील सरना / 19-1-25

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