मगर सच यही है

चाहे तुम सच मत मानो, सच मगर यही है।
तेरे सिवा मेरी खुशी, यहाँ कोई और नहीं है।।
चाहे तुम सच मत मानो———————।।
देखता हूँ जिसका ख्वाब मैं, हसीं जिंदगी के लिए।
और जलाता हूँ मैं दीपक, यह जो बंदगी के लिए।।
तेरे सिवा मेरा ख्वाब, यहाँ कोई और नहीं है।
चाहे तुम सच मत मानो——————-।।
मेरे लिए तुम ही बहार हो, तुम ही चांदनी हो मेरी।
तुम ही शमा हो मेरे सफर की, तुम ही रोशनी हो मेरी।।
तेरे सिवा मेरा हमसफर, यहाँ कोई और नहीं है।
चाहे तुम सच मत मानो——————-।।
तेरे सिवा मैं कभी यार, खुश रह नहीं सकता।
मैं भूल सकता हूँ सभी को, तुमको भूल नहीं सकता।।
तेरे सिवा मेरी चाहत, मेरी जिंदगी में कोई और नहीं है।
चाहे तुम सच मत मानो————-;———-।।
तेरे नाम लिख दी है मैंने, अपनी सारी यह वसीयत।
क्योंकि तुमसे ही है मुझको, यहाँ सच्ची मोहब्बत।।
तेरे सिवा मेरा हमनसीब, यहाँ कोई और नहीं है।
चाहे तुम सच मत मानो———————।।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी. आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)