नर से भारी नारी
शीर्षक -नर से भारी नारी
एक नहीं दो-दो मात्राऐं,
नर से है भारी ये नारी।
पुरुष प्रधान ये समाज,
समझता फिर भी उसे बेचारी।
नारी ने इस जगत में,
कार्य किये अति भारी।
धरा से गगन तक अपनी छवि उतारी।
नारी की ही कोख़ से जन्मे,
सज्जन, दुर्जन और व्यभिचारी।
करते शोषण-भक्षण नारी का,
अति दुखद है ये लाचारी।
कहने को कहते सब हैं ,
नारी की महिमा है न्यारी।
युगों-युगों से नारी ही क्यूँ,
जीती बन कर के बेचारी।
युग बदला परम्परा है ये जारी,
नारी ने सबकी खातिर अपनी खुशियां मारी।
अब तो सोच स्वार्थी मानव,
तेरी ख्वहिशों के लिए,
कब तक भेंट चढ़ाये नारी।
नारी लक्ष्मी,नारी सरस्वती,
नारी दुर्गा की अवतारी।
चले पुरुष से कद़म मिलाकर,
बुलंद,साहसी,पराक्रमी नारी।
नारी ने जानी जिस दिन अपनी शक्ति,
उस दिन एक अकेली ,पडेगी सब पर भारी।
रानी शशि दिवाकर -अमरोहा