वेदना
///वेदना///
प्रतिध्वनि इस संसार की,
लिखती रही अमिट कहानी।
चिर वेदना मन में संजोकर,
झरता रहा मृदु अश्रु पानी।।
शशि तारकों के आलोक में,
मणि मोतियों का गात लेकर।
चिर पथ की पथिक बनकर,
खोजती रही उद्-दात्त होकर।।
उन विहंगों की लघु कथा ने,
मोतियों का आगार देखा।
देखा नहीं उस पार तो क्या,
यहां सहजता का संसार देखा।।
इस निविड़ में आलोक पुंज,
कहता रहा मुझसे कहानी।
सुन प्राण उनकी आर्ष गाथा,
उनसा नहीं कोई अमोघ त्राणी।।
तुम ही तो हो निस्रोत सागर,
देते रहे मधु काव्य वाणी।
चिर वेदना को मन में संजो कर,
झरता रहा मृदु अश्रु पानी।।
स्वरचित मौलिक रचना
प्रो. रवींद्र सोनवाने ‘रजकण’
बालाघाट (मध्य प्रदेश)