कोहरा
सर्द ठिठुरती रातों में
काँपते सिहरते बदन
ओढे कोहरे की चादर
सिकुङते, सिमटते बदन
रात की बेरुखी से जूझते
टूटते, मिटते बदन
बेपरवाही के मारे
मौत की ओर बढ़ते बदन
चित्रा बिष्ट
सर्द ठिठुरती रातों में
काँपते सिहरते बदन
ओढे कोहरे की चादर
सिकुङते, सिमटते बदन
रात की बेरुखी से जूझते
टूटते, मिटते बदन
बेपरवाही के मारे
मौत की ओर बढ़ते बदन
चित्रा बिष्ट