“नन्ही सी नादान थी,

“नन्ही सी नादान थी,
दुनिया से अनजान थी।
न कोई बड़ी ख्वाइश थी ,
न कोई समझदारी थी ।
सबको अपना माना था,
हैवानियत को न जाना था।
अपनो ने ही अपनो की काया बदल दी,
उस नन्हीं सी पारी की जिंदगी बदल दी ।
उजड़ गया उसका संसार वही,
नहीं कह पाई वह किसी से अपनी मन कही।
सहमी डरी सी रहने लगी,
बनने से पहले ही बिखर गईं उसकी जिंदगी ।
कहती भी तो किससे कहती ,
क्योंकि वह उसी परिवार और समाज में रहती।
हिम्मत नहीं जुटा पाई स्वयं के लिए खड़े होने की,
हार गई वह खुद से बड़ी बन गई रोने की।
खत्म हो गई उम्मीदें उसकी ,
क्योंकि वह थी एक लड़की ।”