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16 Jan 2025 · 1 min read

दोहा सप्तक. . . जीत -हार

दोहा सप्तक. . . जीत -हार

माना जीवन को नहीं, अच्छी लगती हार ।
संग जीत के हार पर, जीवन का शृंगार ।।

हार सदा ही जीत का, करती मार्ग प्रशस्त ।
डरा हार से जो हुआ, उसका सूरज अस्त ।।

जीत हार के सूत में, उलझा जीवन गीत ।
दूर -दूर तक जिंदगी, ढूँढे सच्चा मीत ।।

कभी हार है जिंदगी, कभी जिंदगी जीत ।
जीवन भर होता ध्वनित, इसमें गूँथा गीत ।।

मतलब होता हार का, फिर से एक प्रयास ।
हर कोशिश में जीत की, मुखरित होती आस ।।

निष्ठा पूर्वक जो करें , अविरल अथक प्रयास ।
मिले हार को फिर वहाँ, आजीवन बनवास ।।

जीत हार दो तीर है, जीवन का आधार ।
दो तीरों पर है बसा, सुख – दुख का संसार ।।

सुशील सरना / 16-1-25

1 Like · 35 Views
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