प्रेम संदेश
///प्रेम संदेश///
आज उड़ते विहंग को भी,
रोक लूंगी मैं यहां।
चिर प्रेम का संदेश दे दूं,
दूत भेजूं उसे जहां।।
प्रिय प्राणों के प्राण मेरे,
पलक क्षण को गए थे।
पर न जाने आज तक,
न लौटे रुक गए कहां।।
असीम का आनंद देकर,
चिर विरह को दी प्रेरणा।
देकर सदा की प्राण संसा,
मुझमें छिपा दी वेदना।।
सत्य की संवेदना लेकर,
मिले थे प्राण विभु के।
जाने कहां खो गए वह,
सत्यमूल प्राण प्रभु के।।
आज अंबर को सुना दूं,
हृदय-घन संदेश सपना।।
चिर प्रेम के प्रेमी कहां तुम,
जहां साकार स्वप्न अपना।।
स्वरचित मौलिक रचना
प्रो. रवींद्र सोनवाने ‘रजकण’
बालाघाट (मध्य प्रदेश)