तलबगार हूं मैं दोस्ती का,
तलबगार हूं मैं दोस्ती का,
पर ऐतबार कैसे करूँ।
माना कि मेरे दोस्त हैं,
जमाने में हजारों शायद।
अपने थे दगादार,
मैं तुझ पर ऐतबार कैसे करूँ।
लबरेज हूं वफ़ा की तरन्नुम से,
रुस्वाई पर ऐतबार कैसे करूँ।
श्याम सांवरा….