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15 Jan 2025 · 1 min read

मेरे घर की दीवारों के कान नही है

दोस्तों,
एक मौलिक ग़ज़ल आपकी मुहब्बतों के हवाले,,,,!!

ग़ज़ल
====

मेरे घर की, दीवारों के कान नही है
ऐसा भी नही कि मेरे मकान नही है।
=====================

हां हम बात सुनते फ़कत अपनो की,
ओरों के सुने राज ऐसे इंसान नही है।
======================

है आशियाने बहुत चारों ओर हमारे,
तुम देखो यहां कोई शमशान नही है।
======================

मुहब्बत है जहाँ, जी भर कर रहते है,
ठहरे ना कदम, जहाँ सम्मान नही है।
======================

होती अकसर, आंखे दो-चार हमारी,
खामोश है मत समझे जुबान नही है।
======================

कोई लाख हसरत रखे हमे मिटाने की,
होते मगर “जैदि”,पूरे अरमान नही है।
=======================

शायर:-“जैदि”
डॉ.एलसी.जैदिया “जैदि”
बीकानेर।

Language: Hindi
38 Views
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