सरस्वती माता का वंदन
सरस्वती माता का वंदन
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ऋषि पंचमी बसंत पंचमी माता सरस्वती का जन्मदिन
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जब ब्रह्मा ने सृष्टि रची थी मानव पशु और प्रकृति बनाई
लगा उन्हें ही अभी कमी है क्यों हरसू खामोशी छाई
लिया कमंडल से थोड़ा जल अभिमंत्रित कर दिया जगत को
पानी बहा हवा बह निकली सरस्वती मां जगत में आई
ऋषि पंचमी बसंत पंचमी माता सरस्वती का जन्मदिन
नाम कोई दो पर्व है पावन सुख समृद्धि जगत में छाई
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सरस्वती माता का वंदन करती नित लेखनी हमारी
गौरवशाली मंच बुलायें पर है जाने की लाचारी
चाभी से चलने वाले हम वह हैं खिलौने खोई चाभी
रखा है उसने ही संभाल कर लगता खेल चुके यह पारी
उस मिट्टी के बने हैं पुतले जिन को छूती नहीं निराशा
कलम हुई परिपक्व हमारी बची है लिखने की अभिलाषा
अब भी खंगालता है मानव स्मृतियों के छिपे खजाने
पौराणिक संदर्भ दिख रहे हमको कुछ जाने पहचाने
अद्भुत हैं इनमें चरित्र कुछ जिनसे अंतस बल मिलता है
देते हैं प्रेरणा जगत को कभी ना कोई छल मिलता है
पन्नों में इतिहास के छिपे चरित्र मिलेंगे गौरवशाली
बुझते दिए जलना तय है अब मनेगा फिर त्योहार दिवाली
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डॉक्टर इंजीनियर
मनोज श्रीवास्तव
यह भी गायब वह भी गायब
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