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15 Jan 2025 · 1 min read

चिर विरह

///चिर विरह///

प्रतीक्षा श्लथ नैनों ने क्यों,
चिर मदिरा पिया प्रेम का।
क्या विरह बन प्रिय ही मेरे,
मुझे संदेश देते क्षेम का।।

अनुरागी बनकर तुम ही,
मुझे अवलंब देते नेम का।
या विरह ही है सुख मेरा,
जो संदेश देता हेम का।।

क्यों न अपने ही दृगों में,
बैठा लूं तुम्हें चिक डालकर।
बैठे रहो हे प्रिय प्राण मेरे,
पखारूं चरण हिय धारकर।।

अनंत प्रांगण के छबीले,
रश्मि बन समा जाओ यहां।
क्यों भटकते हो वृथा ही,
इस विस्तीर्ण अंचल में कहां।।

चिर विरह का संदेश पाकर,
मैं जागती रही हूं सदा।
आकर नैनों में बस जाओ।।,
हे प्रिय प्राण मेरे सर्वदा।।

स्वरचित मौलिक रचना
प्रो. रवींद्र सोनवाने ‘रजकण’
बालाघाट (मध्य प्रदेश)

Language: Hindi
38 Views
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