थोड़ी फुरसत भी शुकून नहीं मिलता

थोड़ी फुरसत भी शुकून नहीं मिलता
इस जख्मी जिस्म से
बड़ा आघात देती है ये कठिन रातें
अब इस रुह से जलील हो चुका हूँ मैं
~जितेन्द्र कुमार”सरकार”
थोड़ी फुरसत भी शुकून नहीं मिलता
इस जख्मी जिस्म से
बड़ा आघात देती है ये कठिन रातें
अब इस रुह से जलील हो चुका हूँ मैं
~जितेन्द्र कुमार”सरकार”