दोहा
दोहा
शांत रस
विधा: दोहा
सृजन शब्द-नश्वर
नश्वर ये संसार है ,मन ले आँखे खोल।
कर्मो पर तूं ध्यान दे, लाभ हानि को तोल।।
शाश्वत सच तो मौत है, देखे तू ये रोज।
मोह जगत का त्याग दे ,खुद की कर ले खोज ।।
तेरा मेरा क्यों करे, सब कुछ जाना छोड़।
मन को कर ले शांत तू, प्रभु से नाता जोड़।।
रिश्ते नाते स्वार्थ के,मतलब के सब यार।
उलझा रहता क्यों सदा ,जीवन के दिन चार।।
परख लिया है विश्व को, सब बेगाने लोग।
छलते खुद को हम यहाँ, कष्ट रहे हैं भोग।।
दलदल सा संसार है, धँसते जाते पैर।
जिनको अपना तू कहे,वही दिखाते बैर।।
पहले मरने से मरे, भरता रहता आह।
सकल पदार्थ छोड़ के,मन प्रभु को ले चाह।।
बहुत जिया सबके लिए, मिली नयन जलधार।
अब तू आँसू पोंछ लें, जीवन है उपहार।।
मिथ्या ये संसार है, मिथ्या जग की रीत।
सच्चा साथी ईश है, कर ले मन से प्रीत।।
सीमा शर्मा ‘अंशु’