ख़ुद को अकेले पाता है

दर्द अकेलेपन का जीवन में यारों वही समझ बस पाता है।
जो सबके बीच खड़े होकर भी ख़ुद को अकेला पाता है।।
जिसने सब को जोड़ना चाहा वह ख़ुद को जोड़ ना पाता है।
सबको जोड़ने के चक्कर में वह सबका बुरा बन जाता है।।
दो व्यक्ति जब मिलते हैं तो बनता आपस में उनका नाता है।
यही नाता उनको एक दूजे का रिश्तेदार या दोस्त बनाता है।।
जब कोई अपने विचारों से किसी के विचार बदलना चाहता है।
तब वह अपने आप अपनों के बीच में ख़ुद को अकेला पाता है।।
जब कोई अपने को अपना समझ कर उसकी गलती बतलाता है।
अक्सर ऐसा करने से वह अपने रिश्तों में दरार डालता जाता है।।
क्या कहना ग़लत को ग़लत आजकल ग़लत बताया जाता है।
या फिर कलयुग में सच व्यक्ति को समझ में ही नहीं आता है।।
कहे विजय बिजनौरी जीवन में सच लोगों को समझ देर से आता है।
जो सच को स्वीकार नहीं करता वह ख़ुद को खड़ा अकेला पाता है।।
विजय कुमार अग्रवाल
विजय बिजनौरी।