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13 Jan 2025 · 1 min read

*अलमारी में बंद पुस्तकें, रोज बोर हो जाती हैं (गीत)*

अलमारी में बंद पुस्तकें, रोज बोर हो जाती हैं (गीत)
_________________________
अलमारी में बंद पुस्तकें, रोज बोर हो जाती हैं
1)
शीशे के भीतर सज कर, दिन-रात इन्हें रहना है
मुॅंह पर उॅंगली धरे हुए, कुछ किस से कब कहना है
कोई आए पढ़े हमें भी, अक्सर स्वप्न सजाती हैं
2)
शायद किसी दिवस कोई, आकर अलमारी खोले
कैसी हो प्रिय पुस्तक जी, हौले से वह यह बोले
पृष्ठ-पृष्ठ को पढ़ने वाली, घड़ियॉं पर कब आती हैं
3)
रोज फैलती है सीलन, इससे बचाव कुछ करते
रोज देखते हैं दीमक, देखा पुस्तक को मरते
नई पुस्तकें लेकिन जीना, धीरज से सिखलाती हैं
अलमारी में बंद पुस्तकें, रोज बोर हो जाती हैं
———————————–
रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451

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