दोहा त्रयी. . . . अनुभूति
दोहा त्रयी. . . . अनुभूति
होते हैं दिखते नहीं, शब्द शरों के घाव ।
ज्यों-ज्यों बढ़ती वेदना, अविरल होते स्राव ।।
अन्तर्मन के घाव जब, छोड़ें दृग के द्वार ।
लिखें व्यथा के गाल पर, अनबोले उद्गार ।।
तरल हुई अनुभूतियाँ, बन अंतस की पीर ।
जाने किसकी आस में, यह मन रहे अधीर ।
सुशील सरना / 9-1-25