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9 Jan 2025 · 1 min read

दोहा त्रयी. . . . अनुभूति

दोहा त्रयी. . . . अनुभूति

होते हैं दिखते नहीं, शब्द शरों के घाव ।
ज्यों-ज्यों बढ़ती वेदना, अविरल होते स्राव ।।

अन्तर्मन के घाव जब, छोड़ें दृग के द्वार ।
लिखें व्यथा के गाल पर, अनबोले उद्गार ।।

तरल हुई अनुभूतियाँ, बन अंतस की पीर ।
जाने किसकी आस में, यह मन रहे अधीर ।

सुशील सरना / 9-1-25

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