#लघु_नज़्म :–

#मुख़्तसर_नज़्म :–
■ अगर यही माहौल रहा तो।।
[प्रणय प्रभात]
“तुम देखोगे।
तुम देखोगे।।
हर चार क़दम पे बरबादी।
मुस्तक़विल में ये आज़ादी।।
वहशत का चोला पहनेगी।
फ़ितरत दहशत में बदलेगी।।
ना इत्तिहाद बाक़ी होगा।
ना इत्तिफ़ाक़ बाक़ी होगा।।
ना सुकूं कोई लम्हा देगा।
इक लफ़्ज़ बग़ावत गूंजेगा।।
सड़कों पर केवल हंगामा।
खूँ-आलूदा सब का जामा।।
हाथों में बस ख़ूनी खंजर।
सनसनीखेज़ जलते मंज़र।।
तीखी ज़हरीली सरगोशी।
कुछ खौफ़नाक सी ख़ामोशी।।
इक आँगन में दस दीवारें।
कुछ भिंचे गलों की चित्कारें।।
अलगाव जगाते कुछ नारे।
इंसां बस आफ़त के मारे।।
मुट्ठी, मुक्के, घूंसे, लातें।
हिंसक नारे, थोथी बातें।
नफ़रत समाज मे बांटोगे।
जो बोया है वो काटोगे।
जब भीड़ में ख़ुद को पाओगे।
ख़ुद में तन्हा रह जाओगे।।
ना जुमलों-झांसों में आओ।
ना ख़्वाबों से दिल बहलाओ।।
वरना इक दिन वो आएगा।
सब कुछ तबाह हो जाएगा।।
गोली, बंदूकें, बम होंगे।
ना तुम होंगे ना हम होंगे।।”
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