*स्वाभिमान से पैर पसारें, वह चादर छोटी अच्छी (मुक्तक)*
मां के किसी कोने में आज भी बचपन खेलता हैयाद आती है गुल्ली डं
गीत- हवा-सी यार है ये ज़िंदगी...
*मनः संवाद----*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
हम कोई खजाना नहीं की लूट जाएंगे,
श्री गणेश भगवान की जन्म कथा
मानती हूँ पर्वतों के ऋण बड़े हैं
इस प्रथ्वी पर जितना अधिकार मनुष्य का है
कुछ पन्ने मेरी जिंदगी के...। पेज न.2000
थोड़ी देर पहले घुसे कीड़े का,
##सभी पुरुष मित्रों को समर्पित ##
निगाहें मिलाकर चुराना नहीं है,
*विश्वकप की जीत - भावनाओं की जीत*