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22 Dec 2024 · 4 min read

अंगद उवाच

यह बात लंका काण्ड की है। राम और रावण का युद्ध चल रहा था। उस समय रावण को अंगद ने कहा, हे रावण! तू तो मरा हुआ है। तुझे मारने से क्या फायदा…! अंगद की बात सुनकर रावण बोला, मैं तो जीवित हूँ, मरा हुआ कैसे हूँ? अंगद बोले, सिर्फ साँस लेने वाले को जीवित नहीं कहा जाता है। उस समय अंगद ने रावण को चौदह प्रकार की मृत्यु के बारे में बताया। अंगद द्वारा रावण के लिए बताई गई ये बातें आज के दौड़ में भी लागू होता है। यदि किसी व्यक्ति में इन चौदह दुर्गुणों में से एक भी दुर्गुण है, तो वह व्यक्ति मृतक के समान ही है। अंगद के द्वारा कही गई, इन सभी बातों पर हमे भी विचार करना चाहिए। कहीं इसमें से कोई दुर्गुण हममे तो नही है? अंगद ने रावण को यह 14 दुर्गुण बताए जो कि किसी भी जीवित व्यक्ति को मृत समान बना देते हैं।

जौं अस करौं तदपि न बड़ाई। मुएहि बधे नहिं कछु मनुसाई।।
कौल कामबस कृपनि बिमूढ़ा। अति दरिद्र अजसि अति बूढ़ा।।
सदा रोगबस संतत क्रोधी। बिष्नु बिमुख श्रुति संत बिरोधी।।
तनु पोषक निंदक अघ खानी। जीवत सव सम चौदह प्रानी।

1.कामवश- जो व्यक्ति अत्यंत भोगी, कामवासना में लिप्त रहता है, जो संसार के भोगों में उलझा हुआ है, वह मृत के समान है। जिसकी मन की इच्छाएँ कभी खत्म नहीं होती, जो सिर्फ अपनो के अधीन होकर जीता है, वह मृत सामान है।

2. वाममार्गी- जो व्यक्ति पूरी दुनिया से उल्टा चले, जो संसार के हर बात के पीछे नाकारात्मक खोजता हो, नियमों, परंपराओं और लोकव्यवहार के खिलाफ चलता हो, वह वाममार्गी कहलाता है। ऐसे काम करने वाले लोग मृत के समान माने गए हैं।

3. कंजूस- अति कंजूस व्यक्ति भी मरा हुआ होता है। जो व्यक्ति धर्म के कार्य करने में, आर्थिक रूप से किसी कल्याण कार्य में हिस्सा लेने में हिचकिचाता हो, दान नहीं देता हो ऐसा व्यक्ति को भी मृत माना गया है।

4. अति दरिद्र- गरीबी सबसे बड़ा शाप है। जो व्यक्ति धन, सम्मान, साहस और आत्म-विश्वास से हीन हो, वह भी मृत ही है। अत्यंत दरिद्र मरा हुआ है। दरिद्र व्यक्ति को कभी भी दुत्कारना नहीं चाहिए क्योंकि वह तो पहले से ही मरा हुआ होता है। बल्कि उन्हें हमें जितनी हो सके मदद अवश्य करनी चाहिए।

5. विमूढ़- अत्यंत मुर्ख व्यक्ति भी मरा हुआ होता है। जिसके पास विवेक, बुद्धि नहीं हो, जो खुद निर्णय नहीं ले सके। यानी हर काम के लिए उसे किसी अन्य पर आश्रित होना पड़े ऐसा व्यक्ति जीवित होते हुए भी मृत के समान ही है।

6. अजसी- जिस व्यक्ति को संसार में बदनामी मिली हुई है, वह भी मरा हुआ है। जो घर, परिवार, कुटुंब, समाज, नगर या राष्ट्र किसी भी इकाई में सम्मान नही पाता है, वह व्यक्ति भी मृत के सामान ही होता है।

7. सदा रोगवश- जो व्यक्ति हमेशा रोग से ग्रसित रहता है, वह भी मरा हुआ है। स्वस्थ शरीर के अभाव में मन विचलित रहता है, नकारात्मकता हावी हो जाती है। ऐसा व्यक्ति मुक्ति की कामना करने लगता है। जीवित होते हुए भी रोगी व्यक्ति स्वास्थ्य जीवन के आनंद से वंचित रह जाता है।

8. अति बूढ़ा- अत्यंत वृद्ध व्यक्ति भी मृत के समान है क्योंकि वह अन्य लोगों पर आश्रित हो जाता है। शरीर और बुद्धि दोनों ही अक्षम हो जाते है। ऐसे में कई बार वह स्वयं और परिजन दोनों ही मृत्यु की कामना करने लगता है, ताकि उन्हें उनके कष्टों से मुक्ति मिल जाए।

9. सतत क्रोधी- क्रोध में रहने वाला व्यक्ति भी मृत के समान है। ऐसे व्यक्ति हर छोटी-छोटी बातों पर क्रोध करने लग जाता है। जिस व्यक्ति को अपने मन और बुद्धि पर नियंत्रण नहीं हो। वह जीवित होते हुए भी मृत है।

10.अघ खानी- जो व्यक्ति पाप कर्मों से अर्जित धन से अपना और परिवार का पालन-पोषण करता है, वह व्यक्ति भी मृत ही है। उसके साथ रहने वाले लोग भी उसी के समान हो जाते हैं। हमेशा मेहनत-मजदूरी करके ही धन प्राप्त करना चाहिए। पाप की कमाई पाप में ही चली जाती है।

11. तनु पोषण- ऐसा व्यक्ति जो सिर्फ अपने स्वार्थ और संतुष्टि के लिए जीता हो, संसार के अन्य प्राणी के लिए उसके मन में कोई भी संवेदना नहीं हो ऐसा व्यक्ति भी मृत के समान है। ऐसा व्यक्ति जो हर बात में यही सोचता है सब कुछ मुझे ही मिले और किसी अन्य को मिले या ना मिले वे भी मृत ही है। ऐसे लोग समाज और राष्ट्र के लिए अनुपयोगी होते हैं।

12. निंदक- अकारण निंदा करने वाला व्यक्ति भी मरा हुआ होता है। जो दूसरो में सिर्फ कमियां ढूंढता, जो व्यक्ति किसी के अच्छे काम की भी आलोचना ही करता है। जो हमेशा किसी न किसी की बुराई ही करता रहे। वह व्यक्ति भी मृत ही है।

13. परमात्मा विमुख- जो व्यक्ति परमात्मा का विरोधी है, वह भी मृत ही है। जो यह सोच लेता है कि कोई परमात्मा है ही नहीं। हम जो कहते हैं वही होता है, संसार को हम ही चला रहें हैं। जो परम शक्ति में आस्था नहीं रखता है, वह भी मृत है।

14. संत विरोधी- जो व्यक्ति संत, ग्रन्थ, पुराण का विरोधी है, वह व्यक्ति भी मृत है।

‘संत’ और ‘महात्मा’ समाज में ब्रेक का काम करते है। अगर गाड़ी में ब्रेक नहीं हो तो उसका कभी न कभी दुर्घटना अवश्य हो जाएगा । वैसे ही हमारे समाज को संत और ‘महात्मा रूपी ब्रेक की जरुरत है।

Language: Hindi
67 Views
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