माॅं का जाना

मेरी
हक्की-बक्की ऑंखें
प्रश्नवाचक लम्हे
और
डबडबाई सी आशाऍं
दिन-रात खोजती हैं
तुम्हारे नरम
झुर्रीदार हाथो का
अनमोल स्पर्श
भावहीन जीवन
सूनेपन की
विक्षिप्त उथल-पुथल से
भर गया है माॅं!
रश्मि ‘लहर’
मेरी
हक्की-बक्की ऑंखें
प्रश्नवाचक लम्हे
और
डबडबाई सी आशाऍं
दिन-रात खोजती हैं
तुम्हारे नरम
झुर्रीदार हाथो का
अनमोल स्पर्श
भावहीन जीवन
सूनेपन की
विक्षिप्त उथल-पुथल से
भर गया है माॅं!
रश्मि ‘लहर’