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17 Dec 2024 · 1 min read

हँसिया

जम्मो रंधनी खोली म
हँसिया ह समाय हे,
तरकारी काटे-छोले म
बड़ काम आय हे।

हँसिया के जलवा देख
चाकू तरमराय हे,
हँसिया के सउत बनके
ओहू जघा बनाय हे।

नवा जमाना के लईका मन
नवा-नवा गोठियाथें,
हँसिया ल धर के बारी म
जाय बर ढेरियाथें।

हँसिया के तन-मन जम्मो
लोहा के बन जाथे,
जेन ह ऊँचा काम करथे
ओ लौह पुरुष कहाथे।

डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
टैलेंट आइकॉन- 2022

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