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16 Dec 2024 · 1 min read

मुहब्बत से हराना चाहता हूं

जो सच सबको बताना चाहता हूँ
वही खुद से छुपाना चाहता हूँ

लबों को मैं सजाना चाहता हूं
तुझे अब गुनगुनाना चाहता हूं

तिरे ग़म की अमानत हैं जो आँसू
उन्हें मोती बनाना चाहता हूँ

मुहब्बत ही मुहब्बत हर तरफ़ हो
मैं वो दुनिया बनाना चाहता हूँ

इज़ाफ़ा हो रहा है दुश्मनों में
मैं अपना क़द घटाना चाहता हूँ

रिवायत ने बचा रक्खी है तहज़ीब
मैं जिद्दत भूल जाना चाहता हूँ

तुम्हारे हुस्न के क़िस्से सुनाकर
मैं परियों को चिढ़ाना चाहता हूँ

रक़ीबों से अगर मिल जाए फुर्सत
‘मैं तुमको याद आना चाहता हूँ’

जो नफ़रत के पुजारी हैं उन्हें मैं
मुहब्बत से हराना चाहता हूँ

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