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13 Dec 2024 · 1 min read

बसन्त ऋतु

भूम्याल की पूजा करीक ज्विंकी शुरवात होंदी,
मौरु द्वारु मा जौ पयांन ज्वा ऋतु न्यूतेंदी।
मिठु भात पकौड़ी पकैक ज्वा ऋतु पूजेंदी,
सबसी स्वाणी सबसी प्यारी वा बसन्त ऋतु होंदी।।

जै ऋतु मा डांडी -कांठी ब्योली बणी रैंदी,
पाख्यों मजी पिंगलधग फ्योंली सजी रैंदी।
मौल्यार लगी डाल्यों मा घुघुती घुरैंदी,
सबसी स्वाणी सबसी प्यारी वा बसन्त ऋतु होंदी।।

खोला- खोलों मा जै ऋतु मा पिठु कुटाई होंदी,
घसेरी बणू – बणू तै गीतों न गुजौंदी।
जै ऋतु मा थौला मेलूं मा देवता पूजै होंदी,
सबसी स्वाणी सबसी प्यारी वा बसन्त ऋतु होंदी।‌।

जै वक्त मा दे्यली द् यल्यों मां फ्योंली पड़ी रैंदी,
फूल्यारी फूलों का बाना बणू बणू मा जांदी।
पापड़ी कलेऊ बुखणा दिशाध्याणी ल्यांदी
सबसी स्वाणी सबसी प्यारी वा बसन्त ऋतु होंदी।।

छौ छलेट कू पर्व भी जब ज्यादा लग्यूं रैंदू,
घड्यालू द्यो द्यवतों कू मंडाण भी लग्यूं रैंदू।
चूलू – आरु गुर्याल की भी डाली फूली रैंदी,
सबसी स्वाणी सबसी प्यारी वा बसन्त ऋतु होंदी।।

जै ऋतु मा हर्याली मा देवता पूजै जांदा,
कखी होली का रंगों मा सभी मस्त बण्यां रैंदा।
रूमी झुमीक वर्षा ऋतु भी नजदीक ऐजांदी,
सबसी स्वाणी सबसी प्यारी वा बसन्त ऋतु होंदी।।

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