''दाएं-बाएं बैसाखी की पड़ते ही दरकार।
मन का मिलन है रंगों का मेल
हर एक मन्जर पे नजर रखते है..
वसंत
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
प्रेम पगडंडी कंटीली फिर जीवन कलरव है।
दरिंदगी के ग़ुबार में अज़ीज़ किश्तों में नज़र आते हैं
अक्सर हम एकतरफ़ा मनगढन न जाने क्या कुछ सोच लेते हैं. मगर स्थ
बाल कविता: तितली रानी चली विद्यालय
मेरी माँ "हिंदी" अति आहत
Rekha Sharma "मंजुलाहृदय"
कहांँ गए वो भाव अमर उद्घोषों की?
विनम्र भाव सभी के लिए मन में सदैव हो,पर घनिष्ठता सीमित व्यक्