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7 Dec 2024 · 1 min read

रोपाई

नजर पड़ी वो रूप रही थी,
छलकत धन की क्यारी।
गौरवर्ण पर पंक लपेटे,
छवि थी उसकी प्यारी।
कसे कमरबंद पर कर था,
लतफत थी सारी साड़ी।
टिपटिप बूंदें मेघराज की,
अधरों को बनाती न्यारी।
देख प्रकृति की छटा निराली,
आकुल मन ने ली अँगड़ाई,
जी मेरा भी करता, मैं भी
करता खूब रोपाई।।

Language: Hindi
96 Views
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