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7 Dec 2024 · 1 min read

ग़ज़ल

हाय! कितना गंदला अब हो गया अपना शहर।
जाति, भाषा, धर्म सबका घुल गया इसमें ज़हर।।

कल मोहब्बत रात को आई थी अपने देश में ।
पर यहाँ का हाल देखा, तो गई वो भी ठहर ।

अब किनारे पर बहर के देश है अपना खड़ा,
और उसके पास उठ उठकर के आती है लहर ।

जब उजड़ते, टूटते, गिरते हुए देखे मकाँ,
ऐसा मंजर देखकर के, ख़ुद गया शायर सिहर।

— सूर्या

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