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6 Dec 2024 · 1 min read

दोहा पंचक . . . अन्तर्जाल

दोहा पंचक . . . अन्तर्जाल

गूगल से मत पूछना, अपने दिल का हाल ।
यह क्या जाने प्रेम का, कितना उलझा जाल ।।

बच्चे अन्तर्जाल पर , भटक रहे हैं आज ।
दुर्व्यस्न में भूलते, जीवन की परवाज़ ।।

कौतूहल में आजकल , भूलें राह किशोर ।
कामुकता के पंक में , होते व्यर्थ विभोर ।।

रहते अन्तर्जाल में, अब तो अतिशय व्यस्त ।
नव पीढ़ी के लक्ष्य सब,इसमें होते ध्वस्त ।।

बिगड़ न जाए लाड़ला, रखना जरा खयाल ।
आदत अन्तर्जाल की , होती है विकराल ।।

सुशील सरना / 6-12-24

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