संवाद
Kaushlendra Singh Lodhi Kaushal (कौशलेंद्र सिंह)
"घूंघट नारी की आजादी पर वह पहरा है जिसमे पुरुष खुद को सहज मह
अश्क पलकों में छुपाकर चल दिए
वज़्न -- 2122 2122 212 अर्कान - फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन बह्र का नाम - बह्रे रमल मुसद्दस महज़ूफ़
क्यों सिसकियों में आवाज को
तुम्हारा प्यार मिले तो मैं यार जी लूंगा।
डर हक़ीक़त में कुछ नहीं होता ।
वैसे थका हुआ खुद है इंसान
Janab hm log middle class log hai,
*गाओ हर्ष विभोर हो, आया फागुन माह (कुंडलिया)
Mere Dil mein kab aapne apna Ghar kar liya
साया हट गया है, फिर नया बरगद तलाशिये...