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29 Nov 2024 · 1 min read

लालसा

जन्म हुआ जब तेरा मानव
लालसा तू न जानता था।
रो – रोकर तू एक ही स्वर में,
मां से दूध मांगता था।।

फिर धीरे – धीरे आगे बढ़कर,
गिरता – पड़ता रहता था।
पढ़कर – लिखकर खेल कूदकर,
हंसके बचपन जीता था।।

अब फिर क्यों तू जवान होकर,
पैसा – पैसा करता है।
असत्य लूट खसौटी से तू,
बिल्कुल भी नहीं डरता है।।

जीवन में इक दिन मानव ऐसा,
घोर अंधेरा छायेगा ।
जब तेरा तन – मन सोकर के ,
किसी और के कंधे जायेगा।।

फिर क्यों जीवन में मानव तू,
लालच में भटका रहता है।
इस दुनिया में निश्चिंत भाव से,
जीवन क्यों नहीं जीता है।।

दुर्गेश भट्ट

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