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22 Nov 2024 · 1 min read

मनोव्यथा

मनोव्यथा
कैसा ये स्पर्श,तन को नहीं छुआ तूने,
पर दिल को तो झकझोर दिया _
है सारी दुनियां अब एक तरफ,
पर मैंने अपना मुंह तो मोड़ लिया _

तरंगे जो उठती नहीं दिल में,
किस-किस की मैं परवाह करुँ_
गुमसुम पड़ी किस्मत में अब,
कैसे मैं प्रेम प्रवाह करुँ _

है फैला वैराग्य का सागर गहरा,
कैसे मैं जीवन का सफर करुँ _
है राधे-कृष्ण का यदि प्रेम अमर,
शाश्वत,अटूट और प्रखर रहूँ_

मैं पीर लिख दूँ मीरा जैसी,
तुम लिखना न मिलन राधा जैसा_
मैं रुक्मणी सी गले का हार बनूँ ,
लेना नहीं प्रेम मुझे आधा जैसा _

मौलिक और स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – २२/११/२०२४ ,
मार्गशीर्ष , कृष्ण पक्ष ,सप्तमी ,शुक्रवार
विक्रम संवत २०८१
मोबाइल न. – 8757227201
ई-मेल – mk65ktr@gmail.com

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