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16 Nov 2024 · 1 min read

ग़ज़ल

*
वो ये कहते थे हम चुप्पियाँ छोड़ दें
ज़िद हमारी थी वे तल्ख़ियाँ छोड़ दें

खेल नफ़रत का मत खेलिए ये न हो
आप जलती हुई बस्तियाँ छोड़ दें

ख़ुद जो ममता की इस जग में पहचान हैं
कोख में मारना बच्चियाँ छोड़ दें.

धूप के एक टुकड़े की है इल्तिज़ा,
लोग घर की खुली खिड़कियाँ छोड़ दें

पहले मेरी उन्होंने ज़ुबां काट ली
अब नसीहत ये है सिसकियाॅं छोड़ दें

बिजलियों पर न तोहमत लगे बेसबब
यूँ न जलता हुआ आशियाँ छोड़ दें

रश्मि ‘लहर’

Language: Hindi
2 Likes · 109 Views
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