चलेंगे साथ जब मिलके, नयी दुनियाँ बसा लेंगे !
दोहा पंचक - - - - रात रही है बीत
*कण-कण में तुम बसे हुए हो, दशरथनंदन राम (गीत)*
दम है तो गलत का विरोध करो अंधभक्तो
सिर्फ़ मेरे लिए बने थे तो छोड़कर जाना क्यूं था,
मुख पर जिसके खिला रहता शाम-ओ-सहर बस्सुम,
वो जुगनुओं से भी गुलज़ार हुआ करते हैं ।
काग़ज़ो के फूल में ख़ुशबू कहाँ से लाओगे
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