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13 Mar 2025 · 1 min read

यह हार,जीत का गहना है।

जब मेहनत फीकी पड़ जाए
या स्वप्न भाग्य से लड़ जाए।
क्या किंचित तुम्हें निराशा है
क्या विलचित तेरी आशा है।

माना कि मैं हूं राम नहीं।
सह सकता वन आयाम नहीं।
किंतु चेतक को पुनः जगा
दुःख को मन से हां दूर भगा।

खंडित आभा को जोड़ें चल
हारों के हार को तोड़ें चल।
अवरोधों का प्रतिकार करूं
खुद से ही खुद का सार गढ़ूं।

यह हार,जीत का गहना है।
इतना ही तुमसे कहना है।

कर्तव्यों के इस प्रांगण में
हां जीवन के इस आंगन में।
तुलसी तुम्हें लगाना होगा।
दीपक नया जलाना होगा।

दुःख सुख से होकर परे अभय
जगती भर होनी है जय जय
इस विजय से आच्छादित स्वर में
हो गूंज कि , जाए अम्बर में।

प्रचंड पवन हो झकझोरे
चाहे वो उपवन को तोड़े।
किंतु तूफ़ान है कुलीन नहीं
किसलय हो सकता मलिन नहीं।

तुमको बस इतना करना है
पाषाणों सा सब सहना है।
यह हार,जीत का गहना है।
इतना ही तुमसे कहना है।

है लक्ष्य पदम् तक योजन का।
कुछ मील चलो तो क्या होगा!
है जटिल जीव की यह धारा
क्षण नष्ट करो तो क्या होगा!

अंतश के अट्टहास त्यागो
सुधि लेना है कोलाहल का।
वर्णित नियति में घूर्णन है
गति रोके कौन धरातल का।

किंतु विचार से हो उत्तंग
मन में फैलाओ नित उमंग
चंदन को जकड़ेगा भुजंग
यह है जीवन का मूल रंग।

आओ,सौगंध की धारा में
सुष्मिणा सौम्य ही करना है।
यह हार,जीत का गहना है।
इतना ही तुमसे कहना है।

दीपक झा रुद्रा

Language: Hindi
27 Views
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