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12 Nov 2024 · 1 min read

ग़ज़ल : तुमको लगता है तुम्हारी ज़िंदगी पुर-नूर है

तुमको लगता है तुम्हारी ज़िंदगी पुर-नूर है
देखो तुम इक बार फिर से रौशनी कुछ दूर है

साथ में घर बार लेकर चल रही हैं औरतें
सोचते हो तुम ये केवल माँग में सिंदूर है

नौ नए लड़कों को अब तक खा गई नौ-नौ दफ़ा
ये तुम्हारे शहर में क़ातिल हवा या हूर है

सर पकड़ कर डिग्रियों को देखता है नौजवाँ
मुल्क में इस वक़्त बेकारी बहुत मशहूर है

ईंट के भट्टों पे अपना तोड़ता है तन-बदन
ये किसी का बाप है मज़दूर है मज़बूर है

इश्क़ में हो बेवफ़ाई बेहयाई बेकली
तुमको गर मंज़ूर है तो हमको भी मंज़ूर है

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