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7 Nov 2024 · 1 min read

#लघुकविता-

#लघुकविता-
देख लिया ना…?
[प्रणय प्रभात]
देख लिया ना…?
अपनों को बेगाने होते,
घर-आंगन वीराने होते।
आँखों के पानी को मरते,
आशाओं को आहें भरते।
अपनेपन को नीर बहाते,
दम्भ-द्वेष को रास रचाते।
छल को झूठे किस्से गढ़ते,
दूरी की खाई को बढ़ते।
देख लिया ना…?
😢☺️😢☺️😢☺️😢☺️😢
#आत्मकथ्य-
निस्संदेह, आज यह एक लघु कविता ही है, लेकिन इसके विस्तार की संभावनाएं भी कम नहीं। सम्भव है, कल उक्त पंक्तियां एक बड़ी कविता का एक अंश बन जाए। आज के विकृत व विसंगत परिवेश में।
-सम्पादक-
[न्यूज़&व्यूज़]
श्योपुर (मप्र)

1 Like · 93 Views
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