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6 Nov 2024 · 1 min read

दो शे'र ( ख़्याल )

दर्द का समंदर पी रहा हूँ मैं ।
ग़नीमत है कि जी रहा हूँ मैं ।।

मिरी आवाज़ बहुत खलती है ।
वास्ते इसीके लब सी रहा हूँ मैं ।।

©डॉ. वासिफ़ काज़ी, इंदौर
©काज़ी की क़लम

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