Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
4 Nov 2024 · 5 min read

शिक्षा और अबूजा

कई बार आपके जीवन में कुछ ऐसा हुआ होता है, जिसे किसी एक अनुभव में बांधना असंभव होता है, वो टुकड़ों में होता है, प्रतिदिन होता है, उसका प्रभावआपका पूरे जीवन पर होता है, परन्तु उसकी तरलता को ठोस बनाना , कठिन हो जाता है। आज मैं ऐसे ही अनुभव की बात करूँगी ।

जनवरी की वह दूसरी रात थी , वर्ष था, 2000, और हम कदुना (नाइजीरिया में बसा शहर जो अंबुजा से सड़क पर आने से दो घंटे की दूरी पर है । ) सेअंबुजा ( नाइजीरिया की राजधानी)आ रहे थे , पूरा शहर सोया हुआ था कोई हलचल नहीं लग रही थी, हम फिर भी मन में नई आशा लिए , अपने आनेवाले कल की ओर बढ़ रहे थे।

हमने अपने चालक से पूछा, सब कुछ इतना ख़ाली क्यों है , तो उसने उतर दिया कि, क्रिसमस के कारण सब लोग अपनी मम्मी को मिलने गए हैं, दस पंद्रहदिनों में ये सब लौट आयेंगे, और शहर फिर से चहक उठेगा ।

तब अंबुजा एक नया शहर था, बहुत सी अंतरराष्ट्रीय कंस्ट्रक्शन कंपनियाँ लाइफ़ कैंप में रहकर इस शहर का वर्षों से निर्माण कर रही थी। मेरे पति काकाम यहाँ कि नेशनल इलैक्ट्रिकल पावर एथोरिटी ( नेपा ) से होने वाला था , इसलिए हमारा घर शहर में था, जहां कुछ विदेशी परिवार रहते थे , परन्तुहमारे बच्चों की उम्र के बच्चे प्रायः उनके साथ नहीं रहते थे । अर्चिस हमारा बेटा चौदह वर्ष का था, और बेटी शीला ग्यारह वर्ष की थी ।

हमारे सामने एक नया शहर खड़ा था, जहां हमें नया काम आरंभ करना था, नया आफ़िस बनाना था, देखना था , नेपा है कहाँ , बच्चों की शिक्षा कीव्यवस्था करनी थी, नए परिवेश में नए मित्र ढूँढने थे, इस अन्जान सभ्यता को समझना था, और इन सब में हमारा सहायक हमारा आत्मविश्वास औरआशावादी दृष्टिकोण होनेवाला था ।

बहुत से लोगों ने राय दी कि बच्चों को भारत किसी होस्टल में रखा जाय, परन्तु हमें हमेशा से लगा है, व्यक्ति के निर्माण में ऐसा बहुत कुछ होता है जोपरिवार से आता है, किताबी विषय पढ़ने के कई तरीक़े हो सकते हैं , परन्तु व्यक्ति की स्वयं की पहचान उसका परिवार ही देता है। कहा जाता है कि दोपैरों पर चलने की वजह से हमारे बच्चे जन्म के समय पूरे विकसित नहीं होते, उनका मस्तिष्क मात्र पचास प्रतिशत विकसित होता है, बाक़ी का अट्ठारहसाल तक होता रहता है। हमें लगा, हम अपने अपरिपक्व बच्चों को किन्हीं अन्जान हाथों में कैसे सौंप दे ! हमने होम स्कूलिंग का निर्णय लिया । ब्रिटिशकाउंसिल ओ लेवल और ऐ लेवल की परीक्षाओं की व्यवस्था करती थी , और हमें बच्चों को घर में पढ़ाकर उसकी तैयारी करानी थी । उस समय ब्रिटिशकाउंसिल अंबुजा में नहीं थी , अर्थात् परीक्षा के लिए हमें कदुना जाना होगा । तब तक यहाँ अंतरराष्ट्रीय स्कूल नहीं आए थे, अमेरिकन स्कूल था, जहांकेवल प्राथमिक शिक्षा होती थी।

शीला ग्यारह वर्ष की थी और हमने उसे नाइजीरियन स्कूल में भर्ती करा दिया, जहां पढ़ाई का कुछ विशेष सिलसिला नहीं था, परन्तु हमें लगा, एक समयमें दोनों को घर बिठाना कठिन होगा, सौभाग्य से हमें एक अच्छा अध्यापक मिल गया, जिसके भारतीय गुरू रहे थे , और वह शीला को रोज़ दो घंटे पढ़ानेके लिए तैयार हो गया ।

शीला के स्कूल में रोज़ नए अनुभव होने लगे । यहाँ अध्यापक हाथ में हंटर रखना अनिवार्य समझते हैं । पहले ही दिन शीला ने एक बच्चे को बुरी तरहपिटते देखा तो वह उसे सह नहीं पाई और लगातार घंटा भर ज़ोर ज़ोर से रोती रही । समाचार स्कूल भर में फैल गया , अध्यापक घबरा गया , और निर्णयलिया गया कि शीला के सामने कभी किसी बच्चे की पिटाई नहीं होगी ।

फिर स्कूल में बैठने के लिए बैंच कम और बच्चे अधिक होते थे, बच्चे बैंच खोने के डर से , जहां जाते थे उसे सिर पर उठाये फिरते थे ।

धीरे धीरे वह एक संस्कृतिक टकराव अनुभव करने लगी, अच्छे मित्र होने के बावजूद उसने स्कूल छोड़ने की ज़िद पकड़ ली , और हमें उसकी बात माननीपड़ी ।

अर्चिस के लिए अध्यापक ढूँढने के लिए मैं कई स्कूलों में भटकी, पुस्तकें नहीं मिली , इंटरनेट नहीं था, सिलेबस मँगवाना कठिन था, कोई पुस्तकालय नहींथा, कोई संगी साथी नहीं, विज्ञान के लिए ढंग की प्रयोगशाला नहीं । फिर धीरे-धीरे समस्याओं के हल निकलने लगे, मित्र दूर दूर से पुरानी पुस्तकें लाकरदेने लगे, किसी तरह ब्रिटिश काउंसिल से सिलेबस आ गया, प्रत्येक अध्यापक से बातचीत करते हुए एक ढाँचा तैयार होने लगा । पेंटिंग , संगीत, नृत्यसबके शिक्षक मिलने लगे । लगा, शिक्षा तो हमारे आसपास बिखरी पड़ी है, आवश्यकता है उत्सुकता और विनम्रता की , हर मिलने जुलनेवाला किसी नकिसी अर्थ में हमारा गुरू हो उठा ।

प्रश्न था उन्हें जीवन के अनुभवों से कैसे जोड़ा जाए, उसका एक ही उपाय था ,समस्त जीवन के अनुभवों को उनके समक्ष खोलकर रख दिया जाए, प्रश्नका अधिकार दिया जाए, और अपनी कमियों को छुपाया न जाए ।

अब आवश्यकता थी, यह जानने की हम कौन है, और कैसे इस पूरी दुनियाँ को अपना घर बनायें ! भारतीयता क्या है, इसको तटस्थ हो जानना आवश्यकहो गया । भारत का इतिहास और ज्ञान असीम है, जिसे जानने के लिए पूरा जीवन चाहिए, परन्तु उसकी नींव को सरलता से समझा जा सकता है।भारतीय चिंतन को समझने के लिए हमने कुछ उपनिषदों को पढ़ा, और समझ आ गया कि हमारी कला और रस सिद्धांत का आधार यही है । बहुत सीफ़िल्में देखी, महाभारत आदि सीरियल देखे, और कुछ हद तक विदेश में रहते हुए भी बच्चों को अपनी पहचान मिल गई ।

दूसरा प्रश्न था, बाक़ी दुनियाँ को आदरपूर्वक खुली नज़र से कैसे देखें ?
हमने बच्चों से कहा, वैसे ही रहो जैसे भारत में रहते हो सबसे मिलो जुलो सबको अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बनाओ । अर्चिस के लिए यह बहुत कठिन नहींथा , परन्तु शीला के लिए सांस्कृतिक दबाव बने रहे , और वह मित्र नहीं बना पाई ।

नाइजीरिया में रहने के कारण संभव है उनकी शिक्षा में कुछ कमियाँ रह गई हों , परन्तु जो हम सबने सीखा वह था, हरेक समस्या का समाधान होता है, असफलता अंत नहीं अपितु पुनः उठ खड़े होने का निमंत्रण है। जहां जो अच्छा है, वह मानवीय प्रयत्न का परिणाम है, उसे अपना लो । यदि कुछ ग़लत है, तो वह है कट्टरता ।

अंबुजा नाइजीरिया की राजधानी है, यहाँ बहुत संख्या में विदेशी रहते हैं , जिनका मिलना मुख्यतः आपस में ही होता है। हम भी उसका भाग रहे औरदुनियाँ भर के लोगों से मिलकर हमें एक व्यापक दृष्टिकोण मिला, और आज हम कह सकते हैं, यह जमीं हमारा घर है ।

बच्चों को व्यापक दृष्टिकोण देने के लिए हमने टाक शो शुरू किया, महीने में एकबार हम उस व्यक्ति को निमंत्रित करते थे, जो हमें कुछ नया दे सकताथा, दस वर्षों तक यह कार्यक्रम चलाकर देश विदेश के वक्ताओं ने हमारे घर आकर हमें कृतार्थ किया। हमारे श्रोताओं में भी सभी देशों के लोग थे ।

हमारे घर में हमारे रसोइया, चालक आदि सब साथ रहते हैं , और सच कहूँ तो कुछ हद तक इन्हीं के सहारे हम यहाँ टिके हैं । हमारे बच्चे अब यहाँ से जाचुके हैं, दुःख सुख में यही हमारे संगी साथी हैं । यदि मनुष्य को मनुष्य होने का सम्मान दे दिया जाए तो वह जहां से भी हो आपका अपना हो जाता है, यहमैंने इन्हीं लोगों से समझा ।

नाइजीरिया के हम सदा ही आभारी रहेंगे । इस देश ने हमें वह सब दिया, जिससे हम अपने जीवन को अर्थपूर्ण बना सकते हैं ।

ईश्वर इस राष्ट्र को उन्नत बनाये ।

शशि महाजन- लेखिका

190 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

प्रेम पाना,नियति है..
प्रेम पाना,नियति है..
पूर्वार्थ
बिड़द थांरो बीसहथी, चावौ च्यारूं कूंट।
बिड़द थांरो बीसहथी, चावौ च्यारूं कूंट।
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
संत हृदय से मिले हो कभी
संत हृदय से मिले हो कभी
©️ दामिनी नारायण सिंह
मां
मां
Suman (Aditi Angel 🧚🏻)
सच तो हमेशा शांत रहता है
सच तो हमेशा शांत रहता है
Nitin Kulkarni
आत्महत्या
आत्महत्या
आकांक्षा राय
3326.⚘ *पूर्णिका* ⚘
3326.⚘ *पूर्णिका* ⚘
Dr.Khedu Bharti
अंत बुराई का होता है
अंत बुराई का होता है
सोनम पुनीत दुबे "सौम्या"
झाड़ू खूब लगाई (बाल कविता)
झाड़ू खूब लगाई (बाल कविता)
Ravi Prakash
बेदर्द ज़माने ने क्या खूब सताया है…!
बेदर्द ज़माने ने क्या खूब सताया है…!
पंकज परिंदा
Way of the Water
Way of the Water
Meenakshi Madhur
यदि होना होगा, तो तूझे मेरा होना होगा
यदि होना होगा, तो तूझे मेरा होना होगा
Keshav kishor Kumar
मुक्तक
मुक्तक
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
डायरी के पहले पेज पर बना
डायरी के पहले पेज पर बना
दीपक झा रुद्रा
काली भजन
काली भजन
श्रीहर्ष आचार्य
होली खेलन पधारो
होली खेलन पधारो
Sarla Mehta
अबाध गति से गतिमान, कालचक्र चलता रहता है
अबाध गति से गतिमान, कालचक्र चलता रहता है
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
वादा
वादा
Bodhisatva kastooriya
रोबोटयुगीन मनुष्य
रोबोटयुगीन मनुष्य
SURYA PRAKASH SHARMA
Happy Sunday
Happy Sunday
*प्रणय प्रभात*
"" *हाय रे....* *गर्मी* ""
सुनीलानंद महंत
मेरे दिल का विश्वास तुमपर। कभी भुल मत जाना जानेजीगर।।
मेरे दिल का विश्वास तुमपर। कभी भुल मत जाना जानेजीगर।।
krishna waghmare , कवि,लेखक,पेंटर
बारिश का है इंतजार
बारिश का है इंतजार
Shutisha Rajput
जनहरण घनाक्षरी
जनहरण घनाक्षरी
Rambali Mishra
तमन्ना
तमन्ना
Annu Gurjar
"कामयाबी"
Dr. Kishan tandon kranti
আমার ভালোবাসার শিব
আমার ভালোবাসার শিব
Arghyadeep Chakraborty
यथा नाम तथा न गुणा
यथा नाम तथा न गुणा
अमित कुमार
ग़ज़ल __ कुछ लोग झूठ बोल के , मशहूर हो गए।
ग़ज़ल __ कुछ लोग झूठ बोल के , मशहूर हो गए।
Neelofar Khan
सागर ने जब जब हैं  हद तोड़ी,
सागर ने जब जब हैं हद तोड़ी,
अश्विनी (विप्र)
Loading...