हाँ, ये आँखें अब तो सपनों में भी, सपनों से तौबा करती हैं।
अरसा हो गया हमको किसी से कहे हुए...!
प्रेम उतना ही करो जिसमे हृदय खुश रहे मांस्तिष्क को मानसिक पी
हनुमान वंदना । अंजनी सुत प्रभु, आप तो विशिष्ट हो।
*चुप बैठे रहने से मसले, हल कभी नहीं हो पाते हैं (राधेश्यामी
#Rahul_gandhi
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
बंदगी करना हमने कब की छोड़ दी है रईस
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गीत- बिछा पलकें नदी सरयू...
शीतल शालीन प्रहार का दृष्टि दृष्टिकोण धैर्य धनपत का साहित्यिक प्रहार
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर