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2 Nov 2024 · 1 min read

#लघुकविता-

#लघुकविता-
■ आप ख़ुद सोचिए।
[प्रणय प्रभात]
“मन रहे स्वदेशी का प्रेमी
ना वस्तु विदेशी पर बहके,
अपनी मिट्टी का सौंधापन
हर बार दिवाली पर महके।
अपना आंगन अपनी क्यारी,
क्यों ना अपने पौधे रोपें?
ये कहो विदेशी हाथों में
अपनी लक्ष्मी को क्यूं सौंपें??
😊😊😊😊😊😊😊😊😊
#आत्मकथ्य-
इस छोटी सी कविता में “दीवाली” मात्र एक प्रतीक है। स्वदेशी के प्रति लगाव वर्ष भर हर पर्व, हर उत्सव, हर आयोजन में होना चाहिए। बशर्ते “लोकल” की मानसिकता “आपदा में अवसर” से प्रेरित न हो।
-सम्पादक-
●न्यूज़&व्यूज़●
(मध्य-प्रदेश)

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