ये दुनिया मिटेगी , अदालत रहेगी
जननी हो आप जननी बनके रहो न की दीन।
मेरा दिल नहीं कहता कि वो मुझे भूल गई होगी।
न ही कश्चित् विजानाति किं कस्य श्वो भविष्यति। अतः श्वः करणीय
सोच रहा हूं तेरे आंचल के साऐं में सदियां गुजारूं ये जिंदगी
(गीता जयंती महोत्सव के उपलक्ष्य में) वेदों,उपनिषदों और श्रीमद्भगवद्गीता में 'ओम्' की अवधारणा (On the occasion of Geeta Jayanti Mahotsav) Concept of 'Om' in Vedas, Upanishads and Srimad Bhagavad Gita)
789P là một trong những sân chơi trực tuyến được đông đảo ng
मैं कौन हूँ कैसा हूँ तहकीकात ना कर
वो जिस्म बेचती है, वैश्या कहलाती है
नज़दीक आने के लिए दूर जाना ही होगा,
चाहत नहीं और इसके सिवा, इस घर में हमेशा प्यार रहे
कर्म प्रकाशित करे ज्ञान को,
कोई पढ़ ले न चेहरे की शिकन
शिवकुमार बिलगरामी के बेहतरीन शे'र
पत्रकारिता सामाजिक दर्पण
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
अब कोई ज़ख्म भी मिल जाए तो महसूस नहीं होता है
सैनिक का खत– एक गहरी संवेदना।